Last modified on 16 अक्टूबर 2016, at 08:30

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा / संतोषानन्द

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला दो लगे उस जैसा

इस दुनिया में जीनेवाले ऐसे भी हैं जीते
रूखी-सुखी खाते हैं और ठंडा पानी पीते।
तेरे एक ही घूँट में मिलता जन्नत का आराम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
भूखे की भूख और प्यास जैसा।

गंगा से जब मिले तो बनता गंगाजल तू पावन
बादल से तू मिले तो रिमझिम बरसे सावन
सावन आया सावन आया रिमझिम बरसे पानी
आग ओढ़कर आग पहनकर, पिघली जाए जवानी
कहीं पे देखो छत टपकती, जीना हुआ हराम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
दुनिया बनाने वाले रब जैसा।

वैसे तो हर रंग में तेरा जलवा रंग जमाए
जब तू फिरे उम्मीदों पर तेरा रंग समझ ना आए
कली खिले तो झट आ जाए पतझड़ का पैगाम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
सौ साल जीने की उम्मीदों जैसा।