Last modified on 13 अगस्त 2014, at 07:25

पानी / मुंशी रहमान खान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:25, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुंशी रहमान खान |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पानी बरसै भूमि पर बहि सरि सागर जाय।
रवि की किरन से भाप बनैं भाप जलद बन जाय।।
भाप जलद बन जाय तुरत पानी बरसावै।
हरी भरी करै भूमि को खेतन अन्‍न भरावै।।
कहैं रहमान ईश गति न्‍यारी महिमा जाय न जानी।
परै अकाल दुकाल जगत महं जो नहिं बरसै पानी।।