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पापा मेरी गुल्लक रख दो / रमेश तैलंग

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पापा मेरी गुल्लक रख दो कहीं छुपाकर।

ऐसी जगह किसी को जिसका पता चले न।
जान बचे बस मेरी, भैया सता सके न।
बिना बात ही फिर मुझको धमका-धमाकर।

अपने पैसे तो उसने कर दिए खर्च सब।
नजर गड़ाए है वह मेरी गुल्लक पर अब।
हार गई हूँ मैं उसको समझा-समझाकर।

मुश्किल से दस रुपये मैंने जोड़े होंगे।
किसे पता है, शायद ये भी थोड़े होंगे,
ब्याह रचूँगी गुड़िया का जब गुड्डा लाकर।