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पाप न कर खै़याम / सुमित्रानंदन पंत

पाप न कर ख़ैयाम,
पाप कर मत कर पश्चाताप!
व्यर्थ ग्लानि संताप
न इससे मिटता उर का ताप!
पापी, दुर्गुण ग्राम
ईश से पाते क्षमाऽभिराम;
प्रभु चिर करुणावान,
पाप-भय से रे फिर क्या काम?