पाय रितु ग्रीषम बिछायत बनाय, वेष -
कोमल कमल निरमल दल टकि-टकि ।
इंदीवर कलित ललित मकरंद रचीं,
छूटत फुहारे नीर सौरभित सकि-सकि ॥
ग्वाल कवि मुदित बिराजत उसीरखाने,
छाजत सुरा में सुधा-सुषमा कों छकि-छकि ।
होत छवि नीकी वृषभानु-नंदिनी की, सोंह-
भानु-नंदिनी की, ते तरंगन कों तकि-तकि ॥