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पारिवारिक तनाव / प्रमोद कौंसवाल

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पारिवारिक तनाव से बेहाल
महिला झील में कूद गई
दिन में जब उसका शव मिला
केवल परिवार वाले ही बेहाल न थे
शामिल था पूरा टिहरी शहर
पूरा टिहरी हिला
जो कभी भूकंप में भी न हिला था

तैरते रहे जानवर
पहाड़ियों से गिरकर कई बार
उनकी उल्टी टांगें दिखती झील के ऊपर

अब आप ही बताइए
महिलाएं कब नहीं मरीं
मेरी मां की जान तो जानें कैसे बची
जब घास काटते जंगल में
तेंदुएं की पूंछ कट गई दंराती से
और बताइए जानवर
कब न मरे नालों गदरों और पोखरों में

ऊपर गांवों को मैं नहीं कहता कि कुछ न होगा
परिजनों की सुरक्षा का ख़तरा
घास काटते ख़तरा
फ़िसलने का
झील में जल-समाधि का
आते जाते दिक्कत गृह-क्लेश का
तंग होती सड़कों
मौत का मौजूद सारा सामान श्मशान में
चौवालीस किलोमीटर लंबी है आख़िर
चारों ओर किसी भी तरह की बाड़ नहीं है।

ऐसा नहीं है कि चिंता नहीं
किनारों पर बाड़ लगेगी
प्रस्ताव भेजा जा चुका
मौत की गहराई तक
लिखा जा चुका सियासतदानों को
पैंतीस साल में अरबों रुपये और भारी विरोध के बाद
झील हमारे तड़के हुए पैरों को काटकर बनीं
अस्सी किलोमीटर का दायरा
हमारे शरीर का माप
बाढ़ आई और हमने बहने में
नहीं की कोई आना-कानी

मिले पूरे देश को बिजली
हमेशा मिले दिक़्क़त
पर कैसे संभव मिट गया उनका अंधकार
हमारे लोग विस्थापित हुए
रहे सुरक्षा में
न मिली उनको पगडंडियां तक साबुत
संकट में चिंता सोई रहती है
जैसे बालकनी में ठंड से बुदबुदाती बिल्ली

लाख टके का सवाल
प्रशासन बेख़बर
पुलिस कप्तान है
गहरी नींद में क्यों