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पारे से बिखर गया / मधु प्रधान

कैसी बही आज ये पवन
पारे-सा बिखर गया मन

चूर-चूर सपनों को
प्यार से समेट लिया
रिसते हुये घावों पर
विस्मृति का लेप किया

व्यर्थ हुये पर सभी जतन
हो गये हैं फिर सजल नयन।
पारे-सा बिखर गया मन॥

काजल-सी रातों में
शोर था उजाले का
कह दिया पर आँखों ने
जीवन भर का लेखा

रुला गई भोर की किरन
दर्द और हो गया सघन।
पारे-सा बिखर गया मन॥