भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पार्क में एक दिन / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस पार्क में जमा होते जा रहे हैं लोग
कोई चुपचाप निहार रहा है
पौधों की हरियाली और फूलों को
कोई मग्न है कुर्सी पर बैठकर
प्रेम क्रीड़ा करने में,

कोई बढ़ रहा है आगे देखने की उत्सुकता लिए
कोई वहीं बैठ गया है घास पर
थोड़ी ठंडक का आनन्‍द लेने
कई बच्चे अलग-जगह पर हैं
झूला झूलते या दूसरे उपकरणों से खेलते हुए
सभी लोग फुर्सत में हैं, फिर भी व्यस्त।

अब थोड़ी देर में फव्वारे चालू होंगे
रंग-बिरंगे मन मोहते हुए
यही आख़िरी ख़ुशी होगी लोगों की

फिर
लौटने लगेंगे
वे वापस घर
कोई परिश्रम नहीं फिर भी थके हुए ।