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पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते / गौतम राजरिशी

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थोड़े आँसू भी निकलते हैं हँसी के वास्ते
"पाल ले इक रोग नादाँ ज़िन्दगी के वास्ते"

जुगनुओं को कौन देखेगा उजाले में कहो
है अँधेरा भी ज़रूरी रौशनी के वास्ते

वक़्त को मालूम क्या, कुर्बान कितने हो गये
हाय कैसे-कैसे लम्हे इक सदी के वास्ते

अहमियत सन्नाटे की क्या है बग़ैर आवाज़ के
अब करो कुछ शोर यारों ख़ामुशी के वास्ते

भेद सोने और पीतल में बताना खेल है
चुटकियों का एक सच्चे जौहरी के वास्ते

थोड़ा नीला, या हो पीला, या गुलाबी ही सही
रंग भी तो चाहिए कुछ, सादगी के वास्ते

कब तलक आखिर ये सहते बस्तियों के ज़ुल्म को
साहिलों ने खोल दी बंदिश नदी के वास्ते

कितने झुरमुट कट गये बाँसों के, किसको है पता
इक सुरीली-सी, मधुर-सी बांसुरी के वास्ते

मौसमों का हाल, ख़बरें मुल्क की, फिल्में नई
कितना कुछ हम कह गये, इक अनकही के वास्ते

रतजगे, बेचैनियाँ, आवारगी और बेबसी
इश्क़ ने क्या-क्या चुना है पेशगी के वास्ते

वो न आयेगा, न भेजेगा ख़बर अपनी कोई
इक ग़ज़ल ही कह लूँ दिल की बेहतरी के वास्ते

झूठ की दुनिया है ये, अहले-सुख़न ! लेकिन सुनो
कुछ तो सच्चाई रखो तुम शायरी के वास्ते



(समावर्तन, जुलाई 2014 "रेखांकित)