http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%A8_/_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0&feed=atom&action=historyपाहुन / कुमार वीरेन्द्र - अवतरण इतिहास2024-03-29T06:28:37Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%A8_/_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0&diff=285067&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार वीरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2020-11-01T15:28:35Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार वीरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=कुमार वीरेन्द्र<br />
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|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
आए पाहुन <br />
शान से, रहे पाहुन ठान के; खाए हलवा<br />
पूड़ी, करवाई जी-हज़ूरी; मिली साली भोली, की हँसी-ठिठोली; जमे रहे घर ही में, रमे रहे <br />
घर ही में; अउर देखो, अउर देखो, अउर, बिन मारे पड़े कपारे लउर; बीता सप्ताह महीना<br />
गए ना पाहुन नगीना; मूँड़ी गड़ी नगरी में, सास-ससुर गगरी में; वाह पाहुन <br />
वाह पाहुन वाह, सहजे पा लिए ग़ज़बे छाँह; आए माई-बाबू <br />
के सन्देश, ससुरारी में बदल लिए भेस; आ मत <br />
भर रे बबुआ पेट, सूख रहा इहँवा रे <br />
खेत; पर का करें पाहुन<br />
किससे डरें <br />
<br />
जी, पाहुन<br />
ससुराल-मज़ा खाजा हो खाजा<br />
भरे मन ना राजा हो राजा; अरे कबूतरी के कबूतर हो, तू तऽ बड़ा अच्छा <br />
वर हो; जीओ जी जीओ पट्ठा, बिन महे कर रहे मट्ठा; अजब रे अजब ठट्ठा<br />
बैठा रहे भट्ठा रे भट्ठा; एक दिन गाँव लौटने को भी सोचा<br />
तो ख़रीदवाए कपड़ा, जूता, मोज़ा; हे जम्ह<br />
तोहरे कारन बहुते हुआ हरजा<br />
सोचा, कितना <br />
पइँचा <br />
<br />
कितना हुआ करजा ! <br />
</poem></div>अनिल जनविजय