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पिंटू जी, नाराज हो? / प्रकाश मनु

पिंटू जी, पिंटू जी, क्या नाराज हो?
तुम तो भैया, हम सब के सरताज हो!
फिर क्यों पिंटू जी, इतने नाराज हो?

बिना तुम्हारे गप्प गोष्ठी खाली है,
बिना तुम्हारे ना खिल-खिल, ना ताली है।
बिना तुम्हारे नहीं चुटकुलों की बारात,
बिना तुम्हारे नहीं कहकहों की बरसात।

मत लेटो अब लंबी ताने, पिंटू जी,
चल दो केक-पेस्ट्री खाने, पिंटू जी।
थोड़ा खिल-खिल हँस दो, प्यारे पिंटू जी,
साथ तुम्हारे हँस दें तारे, पिंटू जी।

करो छेड़खानी फिर थोड़ी पिंटू जी,
अजी, शरारत क्यों अब छोडत्री पिंटू जी?
साथ तुम्हारे फूल उठेंगे फिर गुब्बारे,
हाथ हाथ में लेकर फिर नाचेंगे सारे।

फिर धमाल हम खूब मचाएँगे, पिंटू जी,
हँसी-खुशी के नग्मे गाएँगे, पिंटू जी।
तुम तो सबसे बढ़कर दोस्त हमारे हो,
तुम ही चंदा, तुम ही मन के तारे हो।

हँसी-खुशी के तुम ही मीठे राज हो।
फिर क्यों पिंटू जी, हमसे नाराज हो?

तुम आते तो टप्पे खाती गेंद हमारी,
तुम आते तो उड़-उड़ जाती गेंद हमारी।
चाँद-सितारों तक पहुँचाती गेंद हमारी।
खुद हँसती और साथ हँसाती गेंद हमारी।

अब उदास है गेंद हमारी, पिंटू जी,
लेने आओगे कब बारी, पिंटू जी।
तुम तो भैया, हम सबके सरताज हो,
फिर क्यों पिंटू जी, हमसे नाराज हो?