भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिछली रात की वह प्रात / दूधनाथ सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी आँख के आँसू हमारी आँख में
तुम्हारी आँख मेरी आँख में
तुम्हारा धड़कता सौन्दर्य
मेरी पसलियों की छाँव में
तुम्हारी नींद मेरे जागरण के पार्श्व में
तुम्हारी करवटें चुपचाप मेरी सलवटों में
तुम्हारी एक-एक कराह मेरी आह में ।

पिछली रात की वह प्रात
अवाक् बैठे हम
तुम्हें मैं निरखता चुपचाप
मन में अनकहा सब
रह गया परिताप ।