भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिताओं के मर जाने के बाद / अनुपम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:32, 2 जून 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँओं की शामें लम्बी और उदास हो जाती हैं
उनके पास बचती है सिर्फ़ एक गठरी
जिसमेँ समय-समय के सँघर्षों का हिसाब होता है ।

उसी गठरी मेँ एक छोटी पोटली रहती है
जिसमें पिताओं द्वारा मारे गए थप्पड़ों का भी
बचा हुआ हिस्सा रखा रहता है सहेजकर,
थोड़ा सासुओं के अत्याचार और ननद की ईर्ष्या होती है,
जेठानियों के गहनों का नाम भी रहता है कोने में
माँएँ बताती हैं कि अपनी चारों अँगूठियाँ को
अपनी ननदों को बेटे की छटठी मेँ काजर लगाने पर दे दिया था ।

शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं
तो सबसे पहले अपने नसीब को कोसते हुए,
कोख को धिक्कारते हुए
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं