Last modified on 9 दिसम्बर 2019, at 12:13

पिता की अंतःवेदना / एस. मनोज

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:13, 9 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एस. मनोज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोना सा सुत चला गया
सब सपनों को वह जला गया

हर पल लगता सोना आया
कुछ शुभ संदेशा है लाया
अब मम्मी का सिर सहलाएगा
कुछ बातों में बहलाएगा
फिर उठकर आएगी प्रतिमा
सोना हीरा की प्यारी मां

हीरा सत्यम हैं पुकार रहे
नित्यम मुकुंद हैं गुहार रहे
परिजन पुरजन सब रोते हैं
चाचा चाची ना सोते हैं

मैं आनंद आनंद पुकार रहा
उस दिव्य रूप को निहार रहा
उसकी ही बाट सजाता हूं
उसके ही गुण को गाता हूं

तू जीवन का एक सहारा था
तू सबका राज दुलारा था
बाहों में मेरे भर जा
तू देव लोक से वापस आ।
प्यारे आनंद की याद में