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पिपरी लेके सासु खड़ी, पिपरिया पीले बहू / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पिपरी<ref>पिपरी = पिप्पली पीपल लता की जड़ या कलियाँ जो प्रसिद्ध औषध है। बच्चा होने पर प्रसूता को पीपल का चूर्ण और मधु या गुड़, दूध में मिलाकर पिलाया जाता है, जिससे उसके स्तन में दूध बढ़ जाता है।</ref> लेके सासु खड़ी, पिपरिया पीले बहू।
हो जयतो<ref>जायेगा</ref> होरिलवा ला<ref>के लिए</ref> दूध, पिपरिया पीले बहू॥1॥
पिपरी पीते मोरा होठ हरे, मोरा कंठ जरे हे।
हिरदय कमलवा<ref>कमल</ref> के फूल पिपरिया मैं न पिऊँ॥2॥
पिपरी जेके भउजी खड़ी, चाची खड़ी।
पुरतो<ref>पूर्ण होगा</ref> होरिलवा के साध, पिपरिया पीले बहू॥3॥
पिपरी पीते मोरा आँख जरे, नयना लोर<ref>अश्रु</ref> ढरे।
पिपरी न कंठ ओल्हाय<ref>न कंठ ओल्हाय = गले के नीचे नहीं उतारी जाती है</ref> पिपरिया मैं न पिऊँ॥4॥

शब्दार्थ
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