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पियवा, त पियवा से पातर पियवा, सुनहु बचन मोरा हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पियवा<ref>पिया, पति</ref>, त पियवा से पातर<ref>छरहरा</ref> पियवा, सुनहु बचन मोरा हे।
पियवा, एक पेड़ अमवा<ref>आम्र</ref> लगवतऽ त फलवा हम खइती हे॥1॥
धनिया, जे तुहुँ सुघरि धनिया, सुनहु वचन मोरा ए।
धनिया, एक तुहुँ बेटवा पझइतऽ<ref>पैदा करना</ref> त सोहर हम सुनती हे॥2॥
उठि उठि चलि भेलन बिपर<ref>विप्र, ब्राह्मण</ref> धरे, अउरो से विपर धरे हे।
विपर, तोहरे चरन धोइए पीयबो, पुतर एक होयतो हे॥3॥
पुरुब के चनमा<ref>चन्द्रमा</ref> पछिम होय, सुरुज पछिम उदे हे।
बहुआ तरसि तरसि जीउ जयतो, पुतर कहाँ पयबऽ हे॥4॥
उहँउ<ref>वहाँ</ref> से चलि भइली सासु लगे, अउरो से सासु लगे हे।
सासुजी, रउरेहुँ चरन धोइ पीयबो, पुतर एक होयतो हे॥5॥
पुरुब के चनमा पछिम होय, सुरुज पछिम उदे हे।
बहुआ तरसि तरसि जीउ जयतो, पुतर कहाँ पयबऽ हे॥6॥
उहँउ से चलि भेलन गोतनी से, अउरो गोतनी लगी हे।
गोतनी रउरे चरन धोइ पीतूँ, पुतर एक होयतो हे॥7॥
पुरुब के चनमा पछिम होय, सुरुज पछिम उदे हे।
बहुआ, तरसि तरसि जीउ जयतो, पुतर कहाँ पयबऽ हे॥8॥
उहँउ से चललन ननदी लगी, अउरो ननदी लगी हे।
ननदी तोहरो चरन धोइ पीयबो, पुतर एक होयतो हे॥9॥
पुरुब के चनमा पछिम होय, सुरुज पछिम उदे हे।
भउजो, तरसि तरसि जीउ जयतो, पुतर कहाँ पयबऽ हे॥10॥
नहाइ-धोआइ<ref>नहा-धोकर</ref> ठाढ़ा भेल<ref>ठाढ़ा भेल = खड़ी हुई, अर्ध्य देने के लिए खड़ी हुई। यहाँ का संकेत छठ व्रत के लिए है</ref> सुरुज गोड़ लागल हे।
सुरुज, हम पर होअन देयाल,<ref>दयालु</ref> पिया हो ताना मारल हे॥11॥
आधी रात गयली पहर रात, अउरो पहर राती हे।
बीचे राती ललना जलम भेल, महल उठे सोहर हे॥12॥
आबह बिप्र आबह चउकि<ref>बैठने के लिए बनी चौकी</ref> चढ़ि बइठह हे।
तोहरे कहल<ref>कहा हुआ</ref> नंदलाल, तोहर गोड़ पूजब हे॥13॥
आवह सासु, तूँ आवह, जाजिम चढ़ि बइठह हे।
तोहरे कहल नंदलाल, तोहर पाँव पूजब हे॥14॥
आवह गोतनी, तूँ आवह, मचिया चढ़ि बइठह हे।
तोहरे कहल मोरा लाल, तोहरो पाँव पूजब हे॥15॥
आवह ननदो, तूँ आवह, चटइया चढ़ि बइठह हे।
तोहरे कहल मोरा लाल, तोहरो पियरी पहिरायब हे॥16॥

शब्दार्थ
<references/>