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पिया जेठोॅ के लू / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

पिया जेठोॅ के लू
जानोॅ लेॅ बनलोॅ छै सौतिन यहू
पिया जेठोॅ के लू।

हेना तेॅ गमगम छै बारी-फुलबारी
महुआ के, कटहल के, आमोॅ के ठारी
हमरा लेॅ कस्से सब जेना कहू
पिया जेठोॅ के लू।

दिन तेॅ घड़ियाले रङ निगलै लेॅ लपकै
छाँही भी छकछक करेजोॅ तक हपकै
रात लगै रेतोॅ पर कतला-रहू
पिया जेठोॅ के लू।

तहूँ नै जइयोॅ नै हम्मी ही जैवै
नद्दी में जायकेॅ नै आबेॅ नहैवै
ऐंगनै में पोखरी खनाय नी दहू
पिया जेठोॅ के लू।

-16.5.98