"पिया दूर है न पास है / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
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− | + | ध्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है, | |
− | + | प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है, | |
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− | दीप अंधकार से निकल रहा, | + | दीप अंधकार से निकल रहा, |
− | क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा, | + | क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा, |
− | जी रही सनेह मृत्यु जी रही, | + | जी रही सनेह मृत्यु जी रही, |
− | क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा, | + | क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा, |
− | इसलिए सदा अजेय धूल है, | + | इसलिए सदा अजेय धूल है, |
− | इसलिए सदा विजेय श्वास है। | + | इसलिए सदा विजेय श्वास है। |
− | ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है | + | ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है |
क्योंकि पिया दूर है न पास है। | क्योंकि पिया दूर है न पास है। | ||
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16:32, 4 मार्च 2014 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही,
चित्र बन रहा लकीर मिट रही,
आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक,
राह किन्तु दूर दूर हट रही,
इसलिए सुहागरात के लिए
आँखों में न अश्रु है, न हास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
गा रहा सितार, तार रो रहा,
जागती है नींद, विश्व सो रहा,
सूर्य पी रहा समुद्र की उमर,
और चाँद बूँद बूँद हो रहा,
इसलिए सदैव हँस रहा मरण,
इसलिए सदा जनम उदास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
बूँद गोद में लिए अंगार है,
होठ पर अंगार के तुषार है,
धूल में सिंदूर फूल का छिपा,
और फूल धूल का सिंगार है,
इसलिए विनाश है सृजन यहाँ
इसलिए सृजन यहाँ विनाश है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
ध्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है,
प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है,
मृत्यु तो सदा नवीन ज़िन्दगी,
अन्यथा शरीर लाश नग्न है,
इसलिए अकास पर ज़मीन है,
इसलिए ज़मीन पर अकास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
दीप अंधकार से निकल रहा,
क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा,
जी रही सनेह मृत्यु जी रही,
क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा,
इसलिए सदा अजेय धूल है,
इसलिए सदा विजेय श्वास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।