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पिल्लों के मोल चढ़े ज़्यादा / पंकज परिमल

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पिल्लों के मोल चढ़े ज़्यादा
आदम के कम ।

पिल्लों की संकर और शुद्ध
नस्लों के विज्ञापन ।
आदम के बिगड़े,
ऊँचे हैं
श्वानों के रहन-सहन ।।

अपशब्दों को
सुर्ख़ियाँ उठाकर ले जातीं
गीतों की चर्चा नहीं,
हुए सुर-लय मद्धम ।।

गेहूँ से ज़्यादा मूल्य
कुकुरमुत्ते के सागों का ।
संभ्रम की गलियों में दुष्कर
फिर जीना रागों का ।।

अन्तर्मन से उठकर
पूजाघर तक आए,
पूजाघर में आए
उन्मादों के मौसम ।।