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पीने दें मयकशों को जहाँ भी पिया करें / दीपक शर्मा 'दीप'

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पीने दें मयकशों को जहाँ भी पिया करें
सज़दा-वुजू करें न करें, बस दोआ करें

वे ख़ैरख़्वाह लोग ही थे उसके क़त्ल में
अच्छा है इस शहर से ज़रा फ़ासला करें

कानों ने क्या सुना था ज़बानों ने क्या कहा
इन्सानियत घटी है यहाँ कम मिला करें

रूपोश फिर रहे हैं, रिसायत के बादशाह ?
गद्दी पे फिर ये कौन है, चलिये पता करें

अम्ने-जहाँ को झोंक दी अपनी जवानियाँ
इससे ज़ियादा 'दीप' भला और क्या करें ?