भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीली बत्तियों वाली वह गली / अरनेस्तो कार्देनाल / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 22 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरनेस्तो कार्देनाल |अनुवादक= मंग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब भी मुझे याद है
पीली बत्तियों वाली वह गली
बिजली के तारों के बीच
पूरा चाँद
और कोने पर वह तारा,

कहीं दूर रेडियो की आवाज़
ला मेरसेद के गुम्बद पर बजता ग्यारह का गजर :
और तुम्हारे खुले दरवाज़े पर सुनहरा प्रकाश :
उसी गली में