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पुण्य / विनय मिश्र

कितना भी जवाँमर्द हो
अपने पर गाज गिरते ही
अक्ल ठिकाने आ जाती है
और फिर उसके मुंँह से भी
ऐन वक्त पर
गीता की जगह गाली ही फूटती है
लेकिन इतनी-सी बात से
यह तो पता चल ही जाता है कि
कौन कितना गैर
और कौन कितना अनन्य है
वैसे
लाचारी में किया गया पुण्य
पाप जितना ही जघन्य है ।