Last modified on 29 अप्रैल 2008, at 17:14

पुनः चमकेगा दिनकर / अटल बिहारी वाजपेयी

Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 17:14, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण (हिज्जे)

आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर।