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पुरानी तस्वीरें / असद ज़ैदी

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पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है

जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ

क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है

सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल

जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है

आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई

बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के

जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी


इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में

एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए

अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ

एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है

और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है

कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं

आंखों में कोई लालच नहीं


यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है

उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है

चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह

ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ

घर आए मेहमानों को


और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ

खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो

मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ

जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो

सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा

शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं

और चतुराइयाँ और लालच

इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं

जिनसे लड़ने की कोशिश में

मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ