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पुरानी पीर / भावना कुँअर

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पुरानी पीर
हर गई मन का
सारा ही धीर।
दौड़ती थी पहले
तेज़ कलम
रचती थी कितने
नूतन छंद
अब हो गई बंद।
उकेरती थी
कूँची कितने चित्र
एक से एक
लगते थे विचित्र।
अब तो बस
बिखेरती है रंग
अज़ब औ बेढंग।


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