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पुर-कैफ़ बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है / महेश चंद्र 'नक्श'

पुर-कैफ़ बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
हाँ उन के नज़ारों ने भी दिल तोड़ दिया है

तूफ़ान को शेवा तो है कश्ती को डुबोना
ख़ामोश किनारों ने भी दिल तोड़ दिया है

इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है

किस तरह करें तुझ से गिला मेरे सितम का
मद-होश इशारों ने भी दिल तोड़ दिया है

माना के थी ग़म-गीन कली ख़ौफ़-ए-ख़जाँ से
चुप रह के बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है

अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है

ये दौर-ए-मोहब्बत भी अबज दौर है इस में
ऐ ‘नक्श’ सहारों ने भी दिल तोड़ दिया है