Last modified on 26 जून 2015, at 20:25

पुल / ओक्ताविओ पाज़

अब और अभी के बीच
मेरे और तुम्हारे बीच
शब्दों का पुल है

उसमें घुसकर
अपने भीतर घुसते हैं आप
शब्द जोड़ते हैं
एक घेरे की तरह हमें पास लाते हैं

एक किनारे से दूसरे किनारे तक
वहाँ हमेशा
एक शरीर फैला रहता है
एक इन्द्रधनुष
जिसकी मेहराब तले सोता हूँ मैं