Last modified on 3 जनवरी 2019, at 11:16

पुल / कविता भट्ट


1
पास में खड़ा
मोटर पुल नया,
पैदल पुल-
अब चुप-उदास
था लाया हमें पास ।
2
बचपन था-
जहाँ झूलता मेरा,
टँगा है मन
ननिहाल के उसी
आम के पेड़ पर।
3
जब से बना
पुल मोटर वाला,
बह रही है
अलकनंदा नदी
अब रुकी-थकी -सी
4
वाहन तुम
पुल पर दौड़ते
नदी-सी हूँ मैं
शान्ति से बहती
सब कुछ सहती
5
मानव नंगा
कैसे पाप धोएगी
काँवर गंगा !
उदारमना शिव
भावे आत्माभिषेक ।

-0-