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पुस्तक-मेले में सम्मोहित करती है पुस्तकें / दिनकर कुमार
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पुस्तक-मेले में सम्मोहित करती हैं पुस्तकें
मायावी रोशनी में घूमती हुई भीड़ का हिस्सा बनना
कितना सुखद लगता है
हर चेहरे पर पढ़ने की भूख लिखी होती है
आँखों में होता है कौतूहल का भाव
पुस्तक मेले में सम्मोहित करती हैं पुस्तकें
आवरण को पढ़ते हुए पन्नों को पलटते हुए
प्रदर्शित पुस्तकों पर नज़रें दौड़ाते हुए
किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच जाते हैं लोग
जहाँ ज्ञान का समन्दर लहरा रहा होता है
पुस्तक मेले में सम्मोहित करती हैं पुस्तकें
शब्दों का प्रदेश पुकारता है हमें
आओ भूलकर यथार्थ के दंश
आओ भूलकर गृहस्थी की टीस
हम तुम्हारे सीने में फैलाएँगे उजाला
जगत को देखने की दृष्टि देंगे ।