पूछ मत मैंने जुदाई में तिरी क्या लिख्खा
अपने एहसासे मुहब्बत का क़सीदा लिख्खा
इश्क़ में तेरे कभी दिल ये तड़पता लिख्खा
ज़ीस्त को अपनी तिरी नाम का सजदा लिख्खा
उम्र भर करती रही जिसकी वफ़ाओं की तलाश
उसने नाकाम सफ़र का मिरे किस्सा लिख्खा
देख कर तुझको ही जलते हैं मुहब्बत के चराग़
दहर में सबसे अलग ही तेरा रुतबा लिख्खा
ये अलग बात है वह दूर गया है मुझसे
फिर भी हर गाम पर मैंने उसे अपना लिख्खा
ताक़यामत तुझे दुनिया न भुला पाए कभी
इस लिए मैंने 'वफ़ा' का तिरी चर्चा लिख्खा