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पूर्ण रूप से स्वयं को जानो / उर्मिल सत्यभूषण

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मुझमें और मेरे वचनों में
श्रद्धा और विश्वास करो
निर्भय होकर कर्त्तव्य के
पालन में नित लगे रहो
‘मेरी लीलायें’ लिख डालो
दुष्कर्मों का होगा नाश
उनको सुनने मात्र से ही
दुर्बुद्धि का होगा विनाश
यह मेरी अनुपम रचना है
अचेतन, चेतन यह ब्रह्मांड
अवृधा प्रकृति के रूप में
मैं उस रचना में हूँ व्याप्त
घृणा न करना और न करना
किसी का भी तुमको तिरस्कार
मैं ही हूँ हरेक कृति में
मुझको दो श्रद्धा और प्यार
मेरा स्थूल शरीर तो यह
अनित्य है विनाशी है
केवल ब्रह्म ही है अमर
अनित्य और अविनाशी है
मैं ही वासुदेव हूँ और
मैं हूँ रहस्यमय ओंकार
पूर्ण समर्पण करके मुझमें
हो जाओ तुम एकाकार
मैं कौन हूँ के महत्त्व का
होता है जब तुमको ज्ञान
इच्छायें गलने लगती हैं
सूर्यताप से बर्फ समान
पूर्ण रूप से स्वयं को जानो
यही तो सच्ची पूजा है
तुम ही वह हो वह ही तुम हो
और न कोई दूजा है।