भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पृथ्वी के कक्ष में / वंशी माहेश्वरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:47, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण
पहले की तरह नहीं होगा पहला
आज की नंगी आँखों में
उदित होती उम्मीद
कल की देह में अस्त हो जाएगी
सूर्य की आत्मा में
उदित होगा कल
पृथ्वी के कक्ष में चलेगी कक्षा
कक्षा के बाहर आते ही
आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान ।