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पेट भूखा हो, नहीं रुचता भजन, हम क्या करें? / संदीप ‘सरस’

पेट भूखा हो, नहीं रुचता भजन, हम क्या करें?
बींध देता है हृदय को, यह रुदन, हम क्या करें?

भींच रक्खे थे दबाकर दांत से अपने अधर,
पीर मन की खोल देते हैं नयन, हम क्या करें?

कंटको के बीच खिलते फूल की थी कामना,
किन्तु हिस्से में हमारे है चुभन हम क्या करें?

आसमाँ को चूमते हैं झोपड़ी के हौसले ,
हो भले ही आपका ऊँचा भवन, हम क्या करें?

कीजिए टुकड़े हमारे, यह हमें स्वीकार है,
स्वाभिमानी हैं, नहीं झुकना सहन,हम क्या करें?

झूठ कैसे बोल दें, सिद्धांत के विपरीत है,
हैं अखण्डित सत्य के सारे वचन,हम क्या करें?

भावनाओं को हमारी आपने समझा नहीं,
आपका है एकपक्षी आकलन, हम क्या करें?,

जो जिया जैसा जिया है, बस ग़ज़ल में कह दिया,
आपको लगता नहीं मौलिक सृजन,हम क्या करें?