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पेड़-2 / श्याम बिहारी श्यामल
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मुखर हैं पेड़ आज
साफ़-साफ़ सुनाई पड़ रही है
उनकी सरसराती हुई असहमति
मचल-मचलकर
धमका रहे हैं पेड़
तनती जा रही हैं
असहमत डालियाँ
चिनगारी फूँक रहे हैं
सूखे पत्ते
अचानक कहाँ से
कैसे आई यह आँधी
कि बाई सरक रही है
आकाश की !
धूल उड़कर घेर रही है आकाश !
क्या होगा तब
बोल फूटेंगे जब
सदियों चुप गवाह पेड़ों के ?