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पेड़ पर अधखाया फल / राकेश रोहित

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पेड़ पर अधखाया फल
पृथ्वी के गाल पर चुम्बन का निशान है
यह प्रेम की अधसुनी आवाज़ है
यह सहसा मुड़ कर तुम्हारा देखना है।

यह तुम्हें पुकारते हुए
ठिठक गया मेरा मन है
यह कोई मधुर कथा सुनते हुए अचानक
तुम्हारे आँखों में ढलक आई नींद है।

अधखाए फल से छुपाए नहीं छुपता है
प्यार का मीठा ताज़ा रंग
अधखाए फल से झरते हैं बीज
तो हरी होती है धरती की गोद

अधखाया फल अचानक हथेली पर गिरा
तो मैंने चाँद की तरह उसे समेट लिया
यह धरती पर सितारे बरसने की रात थी
मैंने हौले से चूम लिया उसे
जैसे उनींदे उठ कर तुम्हारा नींद भरा चेहरा।