Last modified on 1 जनवरी 2009, at 11:35

पेड़ / यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल

हम देखते हैं फूल ।
लिखता है पेड़ भी कुछ धूप में
शब्द रिसते हैं रंगों में ।

एक टहनी का कंठ फूटता है
चिड़िया ।

भुरभुरी मिट्टी, गीली मिट्टी
अचानक सुनती है कुछ
हम सुन नहीं पाते
अचरज से देखते उसे कुछ
सुनते हुए ।
(हज़ारों सालों की स्मृति)

कोशिश करते हम भी ।
कोशिश है कविता ।