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पेड़ / हरीश करमचंदाणी

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पेड़ कट रहा था
और मेरे पास शब्द नहीं थे
 लकड़हारे के विरूद्व
काट रहा था
वह तो ठेकेदार के लिए
मैंने गौर से देखा उसे
लगा वह खुद भी कट रहा था
साथ साथ

और उसका कटना
पेड़ के कट कर गिर जाने के बाद भी जारी था