भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले / राहत इन्दौरी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 13 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहत इन्दौरी }} Category:ग़ज़ल <poem>पेशानियों पे लिखे म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले|
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले|

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है,
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले|

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात,
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले|

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर,
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले|

परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो,
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले|