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पैदाई के पन्ना पे / राज रामदास

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पैदाई के पन्ना पे
संसार के स्याही से
चाहत के चिट्ठी लिखी चाहिस
कविता
हाँ
ओही
छोट-मोट
दिल के बोली
जौन अब्भे काल्हे
नंगे दौड़त-गिरत रहा
दुनिया के द्वारे

इ इन्सान के इच्छा है
मानुस के अन्तिम मतलब
या सोच समझ के सजावल भूल
जौन भविष्य के फुसलावे है

के जाने
खिड़की खुलल है अब्भे
बाहर
दिन के ओइय्या पे
किसकिल्ली अपन किलबिल से
बाहिर भासा के
नचवावे है।