भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैदा कोई राही कोई रहबर नही होता / अनवर जलालपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैदा कोई राही कोई रहबर नही होता
बे हुस्न-ए-अमल कोई भी बदतर नही होता

सच बोलते रहने की जो आदत नही होती
इस तरह से ज़ख्मी ये मेरा सर नही होता

कुछ वस्फ तो होता है दिमाग़ों दिलों में
यूँ हि कोई सुकरात व सिकन्दर नही होता

दुश्मन को दुआ दे के ये दुनिया को बता दो
बाहर कभी आपे से समुन्दर नही होता

वह शख़्स जो खुश्बू है वह महकेगा अबद तक
वह क़ैद माहो साल के अन्दर नहीं होता

उन ख़ाना बदोशों का वतन सारा जहाँ है
जिन ख़ानाबदोशोँ का कोई घर नहीं होता