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पैहलॅ सर्ग / उर्ध्वरेता / सुमन सूरो

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मधुमती

कोनो लोकेॅ सेें झरलै रसमय
झर-झर मधु के धारा है?
कोनी लोंऽकॅ,
लेलकै लूटो सबटा पारा हे।
कोनी लोऽकें?

सुचेता

स्वरलोकँ सें झरलै बहिना!
झर-झर मधु के धारा हे;
मिरतू लोऽके,
लेलकै लूटी सबटा पारा हे;
मिरतू लोऽकें!

धरेॅ-धरेॅ में उगलै गज-गज
मधुमय फूल पतैया हे;
पोरें पोऽरें।
बिरछीं-बिरछीं गमकै गम-गम
कोंढ़लो फूल-मँजरिया हे,
बेराँ बेऽराँ
बहिना! बाजै बाँस-बँसुरिया हे;
बेराँ बेऽराँ!

मधुमती

कत्तेॅ ढरै छै छौंड़ी इंजोरिया?
फाटै जना बहुरिया हे!
कोनी गूऽने,
बेलज भेलै नया उमेरिया हे?
कोनी गूऽने?

सुचेता

जन्नेॅ देखॅ तन्है मधु के
मिलै परसलॅ माया हे!
जीबें जीऽबें,
बहिना! सगरो ओकरे छाया हे!
जीबें जीऽबें।

छतिया-छतिया गोलियाय दैल्कै
मँह-मँह रूसा-रूसा हे!
झांखीं झाँऽखीं,
बहिना! फुललै टूसा-टूसा हे;
झाँखी झाँऽखीं!

खलबल-खलबल जना करै छै
सोतेॅ-बिचें मछरिया हे!
आँङें आँऽङें,
बहिना! तेन्हैं करै उमेरिया हे
आँङें आँऽङें!

मधुमती

स्वरलोकेॅ में बास करै के?
मधु है के ढरकावै हे?
रोची रीऽची,
कौने जिनगी सुफल बनाबै हे;
रीची-रीऽची?

सुचेता

स्वरलोकॅे में माय अदिति के
सब संतान बिराजै हे!
तिन रं पीऽठीं,
ऊषाँ मधु के कलशॅ साजे हे;
तिन रं पीऽठीं!

रस्सें-रस्सें मधु ढरकाबै
तारमतार किरणमय हे!
देहें-बेऽहें!

धरती बनलै सुन्दर-सुखमय
स्वरलोको ललचलै हे!
कत्तेॅ बेऽरी,
ओकरो बेटा धरती ऐलै हे!
कत्तेॅ बेऽरी!

धरती केरॅ महिमा बहिना,
अजगुत अपरम्पार हे!
आठो बऽसू
ऐलै घूमै लेॅ संसार हे
आठो बऽसू!

देवता-पित्तर जहाँ रमै छै
सुन्दर सुखद हिमालय हे!
चोटी-चोऽटी
बहिना!बिरमै देखै भालय हे,
चोटी-चोऽटी!

सुन्दर-सुन्दर कनियैनी के
साथें सुन्दर जोड़ा हे!
मानॅ बहीना,
अंतिम खपसुरती के खोंढ़ा हे,
मानेॅ बहीना।

मधुमती

कहॅ बहिनपा सौंसे खिस्सा
जिनगी सुफल बनाबॅ हे!
केना-केऽना,
करै बहिना! जिया जुड़ाबॅ हे;
केना-केऽना!

मधुलोॅ के बासी कहिनॅ
कहिनॅ ओकरॅ प्यार हे?
आरो बहीना,
बोलॅ कहिनॅ छै सहचार हे,
आरी बहीना!

कथी लेॅ ऐलै ये धरती पर
कहाँ-कहाँ विरमैल हे?
आरो बहीना,
की-की देखी केॅ ललचैलै हे?
आरो बहीना!

कत्तेॅ दिन तक बास करलकै,
धरती केॅ की देलकै हे?
आरो बहीना,
बोलॅ की-की एकरॅ लेलकै हे?
आरो बहीना!

छूटलॅ-बढ़लॅ बात बतैहॅ,
कथा सभे बिस्तारी हे!
कोनी रूऽपें,
रहलै साथें सब सुकुमारी हे,
कोनी रूऽपें?

रुचलै मह-मह यै धरती के
मंजर कली मकूलो हे!
आ की बहीना!
मिललै डहडह कोनों शूलो हे?
आकी बहीना!

सुचेता

सुनॅ बहिनपा यै धरती पर
दुख-सुख साँझ-बिहान हे!
आगूँ पाऽछूँ,
आबै करने तान-उतान हे,
आगूँ-पाऽछूँ।

प्रेम-घृणा छै, खुशी उदासी
मधुवसन्त, पतझार हे,
ठाम्हैं बहीना,
ठाही, ठाम्हैं छै रसधार हे!
ठाम्हैं बहोना।

स्वरलोकॅ में कहियो बहिना!
कहाँ दोरस्सॅ धाबै हे?
एक्के स्वऽदें,
दूभर जिनगी वहाँ बनाबै हे!
एक्के स्वाऽदें!

मधु पीबी केॅ कै दिन तोंहें
रहॅे सकै छॅ धीर हे?
सोचँ बहीना!
तनी टा खटमिट्ठी के पीर हे!
सोचॅ बहीना!

मजा जुआनी के निखरै छै
बचपन-जरठ बुढ़ारी सें,
याहाँ बहीना!
आबै तीनों पारो-पारी सें
याहाँ बहीना!

स्वरलोकॅ में अजर जुआनो,
एकरस-बेलस लागै हे!
शायद यही लेॅ,
दोरस्सॅ धरती ओकरा भावै हे?
शायद यही लेॅ!

स्वरलोकॅ बे वासी बहिना,
दग-दग जोत उदोत हे!
मोतो बीऽचें,
मानॅ सिरखारॅ के सोत हे!
मोती बीऽचें!

यै धरती पर आबै लेली,
धारै सुन्दर काया हे!
वें सब जानै छै,
बहिनपा! कामरूप के माया हे!
वें सब जानै छै!

जे रं चाहै, ऊ रं बदलै
अपना-अपनी रूप हे!
कत्तेॅ कहीहौं,
बहिना! अजगुत आरो अनूप हे?
कत्तेॅ कहीहौं?

माय अदिति सें आज्ञां लेॅ केॅ,
आठो बसू सँसरलै हे!
दुलहिन साऽथें,
द्यौ पर आबी सभे उतरलै हे!
दुलहिन साऽयें!

द्यू लोकॅ सें झुकी देखलकै,
सुन्दर शिखर हिमालय हे!
देखी बहीना,
बुझलकै मनबिच्छा रं आलय हे!
देखी बहीना!

”बरफी-बरफी चानी देखॅ
कत्तेॅ वहाँ पसरलॅ छै?
ताही ऊपरें,
भरीसक मरकत मनी बिथरलॅ छै;
ताही ऊपरें!

नीलम, पन्ना, पुखराजेॅ के
शोभा अजगुत लागै छै।
हे-हे साजना!
वै पर जाय के कंछा जागै छै,
हे-हे साजना!

बात दुल्हैनी के परखी केॅ
पैहलॅ बसु मुसकाय छै;
”मिरतू लोऽकें,
बरोबर स्वरलो’ केॅ ललचाय छै!
मिरतू लोऽकें।

‘गंगा-अग्नीदेव उतरलै
आरो चारो वेद हे,
कौने जाहुनै
महिमा, कौने जानै भेद हे,
कौने जाऽनं?

”चानी पर्वत जे बोलै छॅ,
हौ धरती के मान हे!
वऽहॅे छैऽकै;
सजनी पुण्यवान हिमवान हे,
वऽहेॅ छेऽकै!

”अग्निदेव छै यहाँ जुगल
लोकॅ केरॅ बिचमान,
ज्ञानीं-माऽनों,
पूजै हुनका आठोयाम हे!
ज्ञानीं-माऽनीं!”

”नगराजेॅ पर रौद कहीं छै”
कहीं पसरलॅ छाया हे!
काँही-काँऽहीं,
सजनी ज्ञान कहीं छै माया हे,
काहीं काँऽहीं।’’

उर्ध्वगमन तप में लौलीनॅ
रिसि-मुनि वहाँ बिराजै हे!
जीवॅ काऽन्हाँ,
पंखिल मधुरस कलशॅ साजै हे,
जीवॅ काऽन्हाँ!

”नव तुरिया युवती किन्नर के
पैसी गुफां डिड़ाबै हे!
मानी-माऽनी,
सजनी! सुख भी कभी पिड़ाबै हे,
मानी-माऽनी!”

”अधलाहा के करनी सज्जन
लोगें जना झँपाबै हे!
गूफा द्वाऽरीं,
मेघें परदा मिहीं बनाबै हे!
गूफा द्वाऽरीं।

”रौदी-छाँहीं - खेला में हिम
मुक्ता-पीलम लागै छौं!
हे-हे साजनी!
कैहने ई रं कंछा जागै छौं,
हे-हे साजनी,”

”स्वरलोकॅ में हिम दुर्लभ छै
दुर्लभ गुफा अन्हार हे!
आरो साजना,
दुर्लभ आलिंगनमय प्यार हे!
आरो साजना!”

”केना बुझबै धूप-छाँह के
मरम वहाँ बिन गेने हे?
हे-हे साजना,
एत्तेॅ देर करै छॅ कैहने हे?
हे-हे साजना।”

हंस-हंसिनी पाँख पसारी
उतरै मानसरोवर में;
ओन्हैं बहीना;
उतरलै जोड़ी मेघ बरोबर में!
ओन्हैं बहीना!

खुशमिजाज बुतरू झपटै छै
जेना नया खिलौना पर
ओन्हैं बहीना,
आठो जोड़ी बरफ-बिछौना पर!
ओन्हैं बहीना!

के आरेॅ पारेॅ होनी केॅ?
केकरॅ जोर जुआनी पर?

मधुमती

बोलॅ बहीना!
चोपैलॅ जाय छै मॅन कहानी पर
बोलॅ बहीना!