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पोटली / सरस्वती रमेश

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बेलन चौका और बुहारने का शऊर
मुझे सौंप कर
जब तुम सौंप रही थी
पैदाइश की अक़ीदत
तुम्हारे आत्मा की दुछत्ती पर
वहीं एक पोटली धरी थी

तुमने मुझसे छिपाकर रखा था उसे
मैंने पूछा था-अपने भीतर की सम्पूर्ण स्त्री तो तुमने
हस्तांतरित कर दिया मुझे
फिर वह पोटली?
और भारी मन से कहा था तुमने

इस पोटली की विरासत आगे न जाये तो अच्छा
क्या है इसमें मां? मेरा प्रश्न था
इसमें पितृसत्ता की एड़ियों तले दरमेसी
स्त्री मन की परतें हैं।

परत दर परत दबे हैं कई घाव
इस पोटली को खोलोगी तो
कई सुंदर स्वप्न कराह कर दम तोड़ देंगे
अच्छा हो इसे मेरे पास ही छोड़ जाओ बेटी।