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पोते के लिये एक कविता / तानूर ओजाइडे / राजेश चन्द्र

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कच्चे तेल से
लबालब भरे दास जहाज़
मुक्त-बाज़ार के सुपर-टैंकरों के रूप में नवीनीकृत
सरकार जनता को दिलासा देती है
कि निर्यात और स्पॉट मार्केट सौदों
की आय से एक दिन आएगा विकास

मेरे बच्चे के लिए
कोई छात्रवृत्ति नहीं
वे नहीं पकड़ सकते मछली
रबर का रस भी नहीं चुआ सकते
जैसा कि मैंने कभी किया था
नदियाँ क़ब्र के साँप में बदल गई हैं
जंगल घिर गए हैं लपटों और स्राव से
तेल क्षेत्र में भी रोज़ग़ार नहीं स्नातकों के लिए

जबकि हमारे पुश्तैनी खेत
कुओं के कूड़ा-करकट में दब गए हैं!
सम्भावनाओं के इस दुष्काल में
बन्दूकें भाँजते हैं टोही पुलिस वाले
और उस पर भी पाइपलाइनों की सुरक्षा में
ग़श्त लगाते हैं अमेरिकी बेड़े

याचना-भरी आंखों के साथ
अपने हाथों को ऊपर उठाए
कूच कर रहे गाँव के गाँव
तराशी गई पत्तियों वाली
शाखों से घिरे रास्तों से

सीएनएन और बीबीसी की
ख़ास रिपोर्ट के अनुसार
औरतें नंगी हो रही हैं
अपने बच्चों और पति को
उस मौत से बचाने के लिए
जो वाकई वहशियाना हैं।

मेरे पोते के साथ ही
देश में एक नव-पाषाण काल
जन्म ले रहा है,
जो क़िताबों में बेहद स्याह है
दास जहाज़ फिर से लद गए हैं
वे सुपर-टैंकरों में नवीनीकृत हैं
एस्क्रावोस में लंगर डाल कर
वे उसी प्रकार देशों को कुचलते आ रहे हैं
जैसे शताब्दियों पहले आया करते थे।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र