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पोत के गुलामों का गीत / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

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हमने आप के लिए संघर्ष किया
जब हवा हमारे खिलाफ़ थी
और पाल नीचे था
क्या आप हमें कभी मुक्त नहीं करेंगे?

हमने पाव और प्याज खाये
जब आप कस्बों में चले गए थे
या जल्दी से भाग गए जहाज़ों से
जब आप मार भगाए गए शत्रु द्वारा

कैप्टन तो पोत की छत पर
ऊपर नीचे टहलता रहता
गाते हुए गीत
लेकिन हम नीचे थे
हम अशक्त हो जाया करते
चप्पू पर टिका सुस्ताते अपनी ठुड्डी
लेकिन आपने कभी हमें आलस्य-शील नहीं देखा
कि हम तथापि आगे-पीछे डोलते रहते
क्या आप हमें कभी मुक्त नहीं करेंगे?

नमक चप्पू का हत्था शार्क की चमड़ी सा बना देता
हमारे घुटने हड्डियों तक छिल जाते नमक की दरकनों से
हमारे बाल चिपक जाते हमारे ललाटों पर
हमारे होंठ कट-पिट जाते मसूड़ों तक
और आपने हमें कोड़े मारे कि हम खे नहीं पाते
क्या आप हमें कभी मुक्त नहीं करेंगे?

लेकिन, कुछ ही समय में, हम सुराखों से निकल आ जाएँगे
जैसे पानी चप्पू की पत्तियों से निकलता है
और भले ही आप कहेंगे दूसरों को
हमारे पीछे चलाने को पोत
आप कभी हमें पकड़ नहीं पाएँगे
जब तक आप चप्पू नहीं पकड़ेंगे
और हवा को नहीं बाँधेंगे पाल में
आह!
क्या आप हमें कभी मुक्त नहीं करेंगे?