पौन बदलगी, म्हारे गाम की, रंगत बदली सारी / सत्यवीर नाहड़िया
पौन बदलगी, म्हारे गाम की, रंगत बदली सारी
पहळम आळे गाम रहे ना, बात सुणो या म्हारी
एक बखत था, गाम नै माणस, राम बताया करते
आपस म्हं था मेळजोळ, सुख-दुख बतळाया करते
माड़ी करता कार कोई तो, सब धमकाया करते
ब्याह-ठीच्चे अर खेत-क्यार म्हं, हाथ बटाया करते
इब बैरी होग्ये भाई-भाई, रोवै न्यूं महतारी
ऊं च-नीच की सोच्या करते, आदर-मान हुवै था
भीड़ पड़ी म्हं गाम जुटै था, सबका ध्यान हुवै था
न्याय करै था पंच-मोरधी, वो भगवान हुवै था
पढ़े-लिखे थे थोड़े वै पर, पूरा ग्यान हुवै था
पढ़-लिख कै बेकार हो लिये, इब तै सब नर-नारी
इब बदल्या ढंगढाळ सुणो यो, हाल सुणाऊं सारा
खूड-खूड पै कटकै मरज्यां, घर-घर योहे नजारा
टुच्ची राजनीति तै इब गामां का बैठ्या ढ़ारा
काण रही ना आज बड़्यां की, सबका चढऱ्या पारा
काम साझले भूल गये इब, इकलखोरी की बारी
रीत गयी अर परीत गयी, के गाम के हाल सुणाऊं
तीज गयी त्योहार गये इब, के नाचूं के गाऊं
गुण्डे माणस राज करैं इब, क्यूंकर सीस नवाऊं
लोकलाज के हुए चीथड़े, कुणसा गाम दिखाऊं
कह ‘नाहडिय़ा’, हाल गाम का, हुया बुरा घणा भारी