प्यारे तरु नीजन विपिन तरुनी जन ह्वै
निकसी निसंक निसि आतुर अतंक मैँ ।
गनै न कलँक मृदु लँकनि मयँकमुखी
पँकज पगन धाई भागि निसि पँक मैँ ।
भूषननि भूलि पैन्हे उलटे दुकूल देव
खुले भुजमूल प्रतिकूल बिधि बँक मैँ ।
चूल्हे चढे छाँड़े उफनात दूध भाँड़े उन
सुत छाँड़े अँक पति छाँड़े परजँक मैँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।