भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार का प्रतिदिन / रंजना भाटिया

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>धरा का रूप धरे उजाला तु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती

पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती

मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती

कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती

बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!