Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 00:04

प्यार का रंग ना बदला / शार्दुला नोगजा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

परिवर्तन के नियम ठगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
अब तक है उतना ही उजाला !

आम का पकना, रस्ता तकना
पगडंडी का घर घर रुकना
कोयल का पंचम सुर गाना
हर महीने पूनम का आना
अरे कहो! कब व्रत है अगला ?
तीज, चौथ कब, कब कोजगरा ?
क्या कहते हो सब कुछ बदला !
गाँव का मेरे ढंग ना बदला !

आम मधुर, रस नेह पगे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
होली के हुड़दंग सा पगला !

इक पल जो घर आँगन दौड़ा
चढ़ भईया का कंधा चौड़ा
आज अरूण रंग साड़ी लिपटा
खड़ा हुआ है वह पल सिमटा
उस पल को आँखों में भरता
छाया माँ मन कोहरा धुंधला !
अभी चार दिन पहले ही तो
पहनाया चितकबरा झबला !

माँ के आगे सब बच्चे हैं
देख, प्यार का रंग ना बदला !
हर सागर है उससे उथला !

नयन छवि बिन, गगन शशि बिन
माधव बिन ज्यों राधा के दिन
कृषक मेह बिन, दीप नेह बिन
शरद ऋतु में दीन गेह बिन
उतना की कम खेत को पैसा
जितना हाथ अनाज ने बदला
जल विहीन मन बिना तुम्हारे
मीन बना तड़पा और मचला !

कष्ट जगत के बहुत बड़े हैं
प्यार का रंग हो जाता धुंधला !
आज बुद्ध तज घर फिर निकला !