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प्यार की एक-दो रात दे दो अगर / डी.एम. मिश्र

प्यार की एक-दो रात दे दो अगर
कुछ सितारे गगन में बढ़ा और दूँ।

साँवली रात भी चमचमाने लगे
सो रही बाँसुरी कुनमुनाने लगे,
मैं बढ़ा दूँ उँगलियाँ जरा-सी अगर
दीप बाती सहित थरथराने लगे,

तुम खुली छूट दो गर मेरे प्यार को
मैं नये लोक भू पर बसा और दूँ।

कुन्तलों की महक रातरानी बने
साँस में साँस घुलकर सुहानी बने,
रूप का रश्मियों की बढ़े तीव्रता
और मेरा हृदय नर्म पानी बने,

तुम मेरे अंक में शून्य बन जाओं तो
मैं धरा पर गगन को झुका और दूँ।

बर्फ को आग बनते दिखा दूँ तुम्हें
पत्थरों को पिघलते दिखा दूँ तुम्हे,
एक पल को अगर बन्द कर लो नयन
स्वर्ग भू पर उतरते दिखा दूँ तुम्हें,

ज़िंदगी में मेरी तुम जो आ जाओ तो
ख़्वाब अपने मैं सारे सजा और दूँ।