Changes

भाँवरे यों तो हज़ारों के साथ भरती रही
ज़िन्दगी अब भी कुँवारी कुँआरी है, इसे कुछ न कहो
उठ न बैठें, अभी रोते हुए सोये हैं गुलाब
रात किस तरह गुज़ारी है, इसे कुछ न कहो
<poem>
2,913
edits