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प्यार की बात भी भारी है, इसे कुछ न कहो / गुलाब खंडेलवाल
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20:36, 11 अगस्त 2011
भाँवरे यों तो हज़ारों के साथ भरती रही
ज़िन्दगी अब भी
कुँवारी
कुँआरी
है, इसे कुछ न कहो
उठ न बैठें, अभी रोते हुए सोये हैं गुलाब
रात किस तरह गुज़ारी है, इसे कुछ न कहो
<poem>
Vibhajhalani
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